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यह घर चौबारा यह आशियाना छोड चले
जहां जन्मे पले बढे आजीविका चला रहे
इज ऑफ बिजनेस में बिज़नेस छोड़ चले
ठौर छोड़ चले आओ अब घर छोड़ चले
सरकार बेघर को घर दे हम घर छोड़ चले
टैक्स क़ा बोझ बढ़ता जीवन दूभर हो रहा
शकुन की तलाश जीविका की तलाश में
मुल्क छोड़ चले आओ अब घर छोड़ चले
भाईचारा लग गया दांव पर दिल घबराता
भीड़भाड़ है लिखने बोलने पर डर जाता
यहां गलत को गलत कहना अपराध हुआ
दौर आया ऐसा आओ अब घर छोड़ चले
सब दुश्मन लगे हर आदमी मुंसिफ हो रहा
अपराधी खुला घुमता निर्दोष जेल जा रहा
सरकार बेबस देखती अन्याय न्याय हुआ
जज डरते देख आओ अब घर छोड़ चले
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