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आधे सच में थोडा झूठ मिलाया गया
ये कॉकटेल जिसको भी पिलाया गया
राम जाने यह कैसा चमत्कार हो गया
उस बंदे का जीतेजी पुनर्जन्म हो गया।
समय बदला बयार आंधी में बदल गईं
आंधी कुछ ऐसी चली सब उड़ता गया
नई पौध कहती रह गई पुराने दरख़्तो से
बचना कैसे जब तुमने जगह छोड दिया
शान्त था झील का पानी कंकर आ गिरा
लहरे जो उठी दूर तक चलती चली गयी
सब ही तो आते गए थे उसके दायरे में
टकराई किनारों के आगोश में समा गई
जीवन की समीकरण कुछ ऐसी बदली
अपने जो थे अपनो में फर्क करते गये
भांग हवा में कुछ इस तरह घुलती गयी
हर सोच का नज़रिया ही बदलता गया
किसी को भी क्या ही समझा पाते यहां
माहौल मदहोशी का होता ही चला गया
कैसे दीदार करा सकते थे उन्हें सत्य का
जब उनका कारोबार ही था असत्य का।
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