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# बसेरा
बसेरा छोड़ कर
बादल चला परबत से टकराने
मिलेगा क्या
उसे उसका कोई अंजाम क्या जाने
अभी तो सोख
गीली बूंद को सागर से निकला है
घुमड़कर अब
उसे भी है घटा के रास्ते पाने॥
जो छोड़ी
सरजमीं तो याद आया हम वहीं के है
खुले इस
आसमां में फड़फड़ाते पर वहीं के है
वो घर जो फूल-पीले,बाली हरियल ओढ़े है लगते
हम टिब्बे
वहीं के है , हम ढेले वहीं के है
दिखी जो
सिल-पे-रस्सी याद आया हम वहीं के है
हलों के पीछे
उड़ते-कूदते बगुले वहीं के है
वो छाया बड़
की जिसमें ठंडे पानी के गड़े मटके
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