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धूप
आज फिर जो मेरी नींद खुल ही गई है
तो सोचा है कोई नई बात लिखूं...
तो आज मेरे कमरे की खिड़की से झाँकती धूप का मुझसे रिश्ता सुनो..
मेरे कमरे की खिड़की से जो हर रोज़ ये धूप झाँकती है,
मेरे ठिठुरे बदन में नई ऊर्जा जगाती है
जाने क्यूँ ये बंद आँखों पर यूं ही मचलती है?
जाने क्यों ये मुझसे लुका छिपी सी खेलती है?
और मैं..
मैं भी थक हार कर इनसे नजरें दो-चार कर ही लेती हूं
जब मेरे कमरे की खिड़की से ये धूप झाँकती है!!
वो सारे ख़्वाब जो मेरी सोती आँखों में सजते हैं
उन्हें सच करने के सोये अरमानों को जगाती हैं
वो सारे ख्याल जिनसे अक्सर दिल दुखता है मे
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