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ये शाम भी ढल गयी
तुम्हारी तलाश में
कल रात इसी डायरी के
किसी पन्ने पर लिखा था तुम्हे
एक हाथ में वाइन का ग्लास पकड़े
मैं तुम्हे शब्दों में उतार रहा था
फिर आँख लगी और
तुम्हे अधूरा लिख कर मैं सो गया
आज सुबह से ढूँढ रहा हूँ
पर
"मेरी नज़्म रूठ कर कहीं चली गयी हैं"||
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