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पिता कभी मरते नहीं! ~संजय कवि 'श्रीश्री'
पिता सदा जीवित हैं,
पिता कभी मरते नहीं!
मेरे हर कर्म में,
दायित्व में, धर्म में;
गूंजते मेरे गीत में,
वात्सल्य में, प्रीति में;
मेरे स्वर की गूंज में,
गूंज की अनुगूंज में;
मुझमें, मेरे चित्र में,
मेरे हर चरित्र में;
पिता सदा जीवित हैं,
पिता कभी मरते नहीं!
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