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क्या है,
क्यों है,
किसके लिए है,
ये नहीं जानता मगर,
बहुत कुछ है मेरे लिए,
थोड़ा बहुत ही सही,
सुकून है बस मेरे लिए,
लम्हा लम्हा बटोरे जा रहा,
कतरा कतरा समेटे जा रहा,
हर बार मिल जाए ज़रूरी नहीं,
हर बार मिलके भी सुकून आ जाए,
ये भी ज़रूरी नहीं,
भीड़ में न खो जाए कहीं ,
लफ़्ज़ों में न बह जाए कहीं,
सोच में ही न रह जाए कहीं,
इसलिए उतार देता हूं,
सारी स्याही, सारा सुकून,
इन बेगुनाह पन्नों पर।
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