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गुंज दो की थी
सुनते चार थे
घनी दुपहरिया मे मिलते आठ थे
आज दुपहरिया जरूर है
लेकिन सन्नाटे के साथ
कभी रात मे भी
गुंज होती थी
कुछ तो श़हर के भागे है
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