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जला कर दुनियाँ तमाम चराग़ को यूं फेंका गया,
जैसे किसी समंदर को दरिया के हाथ फेंका गया।
यूँ तो हर कीमत पर थे तैयार ख़रीददार मिरे....
इश्क़ के दाम खुद उस ज़ालिम को मैं बेंचा गया।
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