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दिल की आग आंखों में लिए फिरता हूँ,
मैं वो दरिया हूँ जो समंदर लिए फिरता हूँ।
इन हवाओं में नहीं साँसे चलाने का दम,
अरसे से जिगर में तूफान लिए फिरता हूँ।
जाने वाले जो कभी थे ही नही मेरे,
उन्ही के आने का इंतिजार लिए फिरता हूँ।
उसके होने के कई मौके गवाएं हैं मैंने,
हर उस गलती का एहसास लिए फिरता हूँ।
रुक गया जो मैं कहीं तो कोसों छूट जाऊंगा,
उसके पाने की हसरत बेमिसाल लिए फिरता हूँ।
जिंदा रहने को अब कुछ रहा नही 'बयार',
सीने में उस ज़ालिम की चाह लिए फिरता हूँ।
- शिव 'बयार'
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