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जातिवाद निर्विवाद जंग करते रहिये
एकता का बीज भंग कर सकें तो करिये
दोषारोपण दूसरों पर व्यंग्य करते रहिये
समाधान, प्रेमगान शब्द मत कहिये
मानव को पथ का पता नहीं, पथ भ्रष्ट हुआ विचरण करता
जीवन के रथ का पता नहीं, अश्वों पर दोष दमन करता
"हैं एक सभी" का बोध नहीं, किस अहंकार पर रण करता
दुंदुभि सहित रणभेरी लिए, रणकौशल पर मंथन करता
जब जान हलक में जा अटकी, न जाति दिखी न धर्म दिखा
जब दिखी मृत्यु आखेटक बन, न साम दिखा न दाम दिखा
जब पड़ा आभावरुधिर का तब, मानव, पशु का न भेद दिखा
तब रक्त वाहिका चीख पड़ी, न मान दिखा, न शान दिखा
ये ऊँच-नीच, ये छुआ-छूत के रोग विनाशक होते हैं
ये मानवता, जीवंत और सभ्यता कलंकित करते हैं
हे मानव, हे निर्बुद्धि प्राण, हे वसुधा के मलीन कंटक
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