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एक रोज उठूंगा और रात लिखूंगा,
ना पूछो तुम क्या बात लिखूंगा।।
तुम पढ़ना बस वो राज़ लिखूंगा,
तुम गाओ जिसे वो राग लिखूंगा।।
तुम सुनो जिसे वो आवाज़ लिखूंगा,
तुम आओ ऐसे परवाज़ लिखूंगा।।
तुम बस जाओ मुझमें ऐसे ख़्वाब लिखूंगा,
तुम ठहरो ऐसे अंदाज़ लिखूंगा।।
तुम हो कहानी ऐसी एक किताब लिखूंगा,
तुमसे जुड़ता एक एक आग लिखूंगा।।
तुम्हारी खनखनाती पायलों की स्वर-तार लिखूंगा,
तेरे नयनों की हर धार लिखूंगा।।
हां! एक रोज उठूंगा और रात लिखूंगा
ना पूछो तुम क्या बात लिखूंगा।।
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