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सिलसिले सांसों के ना जाने कब थम जाए
चलो एक बार फिर से हम गले लग जाए!!
जिंदगी का सफर ना जाने हो कितना लंबा
कुछ वक्त के लिए यन्ही हम दोनों ठहर जाए!!
कुछ लम्हे मेरे पास बैठ जी भर के देख लेने दे
दूरियां ना जाने कब जिंदगी भर की बन जाए !!
कौन झूठा है कौन सच्चा किसी को नही पता
एतबार एक दूसरे का कर हमसफर बन जाय !!
तू जीना चाहता है दुनिया में समुंदर बनकर
क्यों ना तेरी खातिर एक दरिया बन जाय !!
मंजिल सबकी एक ही होती है सबको है मालूम
क्यों न रिश्तों को हम एक नया मुकाम दे जाय!!
सिलसिले सांसों के ना जाने कब थम जाए
चलो एक बार फिर से हम गले लग जाए!!
शैलेन्द्र शुक्ला “हलदौना”
ग्रेटर नोएडा
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