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अपनी छाती पर चलना सिखाती है मां
अपने हिस्से का निवाला खिलाती है मां
आखिरी सांस पर भी याद आती है मां
भगवान से भी ऊंचा दर्जा पाती है मां
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
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