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चुप हूं पर बोल भी सकता हूं
रुका हूं पर चल भी सकता हूं
भीतर कश्मकश है अजब सी
उसी फैसले के इंतजार में खड़ा हूं !!
कब से नही हुआ है सामना खुद से
बात भी नही की है खुलकर खुद से
कहीं हो जाऊं ना शामिल इस तमाशे में
हाथ मुंह बांध कर चुपचाप खड़ा हूं !!
सही गलत पर बात नही होती
संख्या ही अब सही है होती
जिनको इल्म नहीं शहरियत की
उनके हाथों में फैसले की बागडोर है होती
इसलिए अब कानों को बंद कर के
चुपचाप फैसले के कटघरे में खड़ा हूं!!
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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