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जीवन तो अभावों में भी पल जाता है
पर हां बहुत कुछ पीछे छूट जाता हैll
कुछ सपने जिनकी उम्र तय होती है
कुछ बातें जिनकी समय सीमा होती है
खिलौने जिनसे हम दूर रह जाते हैं
बचपना जिसे हम कहीं छुपा लेते हैं
जीवन तो अभावों में भी पल जाता है
पर हां बहुत कुछ पीछे छूट जाता हैll
गुड्डों गुड़ियों के खेल हवा हो जाते हैं
हंसने खेलने वाले दिन खफा हो जाते हैं
दादी नानी की कहानियों से दूर हो जाते हैं
हाथ ना जाने कब जिम्मेदार हो जाते हैं
जीवन तो अभावों में भी पल जाता है
पर हां बहुत कुछ पीछे छूट जाता हैll
हर बात से ना जाने क्यों डर से जाते हैं
दुनिया से अलग थलग कट से जाते हैं
कोई हमसे कुछ पूछ ना ले घबराते हैं
अपने आपको सबकी नजरों से छिपाते हैं
जीवन तो अभावों में भी पल जाता है
पर हां बहुत कुछ पीछे छूट जाता हैll
परिवार की जिम्मेदारियों को ओढ़ लेते हैं
मां की लोरियों को कहीं पीछे छोड़ देते हैं
होते नही हैं बड़े लेकिन बना दिए जाते हैं
खेलने की उम्र में हल मैं नह दिए जाते हैं
जीवन तो अभावों में भी पल जाता है
पर हां बहुत कुछ पीछे छूट जाता हैll
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
ग्रेटर नोएडा (उoप्रo
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