हद ए हरामजादगी's image
Poetry3 min read

हद ए हरामजादगी

ShayakShayak May 22, 2022
Share0 Bookmarks 49333 Reads0 Likes
वोह जब भी बाहर छोटे कपड़े पहन कर आते हैं,
शरीर पर हर निशान साफ साफ नज़र आते हैं,

जोह निशान हैं वोह क्या हैं जन्म से तो नहीं,
हुए हैं उनपर पर लिखें उनके करम में तो नहीं,

यह सारे निशान सारी चोट हमारी ही तो देन हैं,
जो कभी चाबुक कभी बैल्ट तो कभी बनाती चैन हैं

हमे कोई तमाचा मारे तो हममें रोश आ जाता हैं,
और हमसे तमाचा खाने वालों को
कोई हमारे खिलाफ बोले तो जोश आ जाता हैं,

खाने में कम नमक हो या रोटी जल जाए,
चोटी पकड़ के घर से निकाल देता हैं,

क्या बीतती होगी उस बहन पर,
जिसका भाई उसे सब्र रख कहकर रोज़ टाल देता हैं,

ज़ात ए मर्द इंसान कहा कमज़ोर पर वार करती है,
बेबस को और बेबस करती हैं लाचार को लाचार करती हैं

ज़रा सोचो इन्ही से तो सब हैं, हम इनके पीछे पीछे दौड़ते हैं इनसे दिल लगाते हैं

प्यार दिखाते हैं, इज़हार जताते हैं कभी कामयाब होते हैं कभी हार जाते हैं,

गुस्सा बताते हैं, मर्दानगी दिखाते हैं, ACID फेकते हैं, क्यूंकि उसे तुमसे प्यार नहीं हैं। हैं ना

फिर वकालत में शान से अपने कर्मो को रैकते हैं,
<

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts