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वोह जब भी बाहर छोटे कपड़े पहन कर आते हैं,
शरीर पर हर निशान साफ साफ नज़र आते हैं,
जोह निशान हैं वोह क्या हैं जन्म से तो नहीं,
हुए हैं उनपर पर लिखें उनके करम में तो नहीं,
यह सारे निशान सारी चोट हमारी ही तो देन हैं,
जो कभी चाबुक कभी बैल्ट तो कभी बनाती चैन हैं
हमे कोई तमाचा मारे तो हममें रोश आ जाता हैं,
और हमसे तमाचा खाने वालों को
कोई हमारे खिलाफ बोले तो जोश आ जाता हैं,
खाने में कम नमक हो या रोटी जल जाए,
चोटी पकड़ के घर से निकाल देता हैं,
क्या बीतती होगी उस बहन पर,
जिसका भाई उसे सब्र रख कहकर रोज़ टाल देता हैं,
ज़ात ए मर्द इंसान कहा कमज़ोर पर वार करती है,
बेबस को और बेबस करती हैं लाचार को लाचार करती हैं
ज़रा सोचो इन्ही से तो सब हैं, हम इनके पीछे पीछे दौड़ते हैं इनसे दिल लगाते हैं
प्यार दिखाते हैं, इज़हार जताते हैं कभी कामयाब होते हैं कभी हार जाते हैं,
गुस्सा बताते हैं, मर्दानगी दिखाते हैं, ACID फेकते हैं, क्यूंकि उसे तुमसे प्यार नहीं हैं। हैं ना
फिर वकालत में शान से अपने कर्मो को रैकते हैं,
यह तो बातें थी मोहब्बत की, मगर हालत बाद ए निकाह के और भी मुबारक हैं,
कोई किसी कमरे में भूखी पड़ी हैं, किसी को भुखार से हरारत हैं
किसी को अपनों ने आग से झिंझोड़ दिया हैं,
ज़रा ज़रा सी बातों पर हाथों को तोड़ दिया हैं
मां बन गई हैं, फिर भी रोज बच्चो के आगे हैं पिट रही,
लग ना जाए ज्यादा इसलिए खुदहीखुद में हैं सिमट रही
एक हमारी जात हैं जिसे इनके पहनावे में दिक्कत हैं,
कसूर नहीं हैं इनका आखिर हवस ही मर्द कि फितरत हैं
ख़त्म करनी होगी यह हरामजादगी इस जहान ए ख़राब में,
करना होगा ज़िक्र औरतों का अब से उमूर ए नायाब में
ये होगा तो शायद एक बुजदिल आप खुदसे नज़र मिलाएगा
अक्स जो नपुंसक था आईने में हकीकत में दिलेर बन जायेगा
ये उस दिन सब नाश होगा,और फिर सब ठीक होजायेगा
जब ज़ात ए मर्द में से मैं और सिर्फ मैं हट जाएगा,
तब कोई बाप कोई भाई अपनी बेटी अपनी बहन से ये कह पाएगा,
की होगा ज़माना कुछ भी, साले ज़माने की ऐसी कि तैसी,
तू तेरे घर आजा, यह तेरा ही तो घर हैं, बाकी मैं देख लेगा
मैं सब देख लेगा, सबको देख लेगा....
शरीर पर हर निशान साफ साफ नज़र आते हैं,
जोह निशान हैं वोह क्या हैं जन्म से तो नहीं,
हुए हैं उनपर पर लिखें उनके करम में तो नहीं,
यह सारे निशान सारी चोट हमारी ही तो देन हैं,
जो कभी चाबुक कभी बैल्ट तो कभी बनाती चैन हैं
हमे कोई तमाचा मारे तो हममें रोश आ जाता हैं,
और हमसे तमाचा खाने वालों को
कोई हमारे खिलाफ बोले तो जोश आ जाता हैं,
खाने में कम नमक हो या रोटी जल जाए,
चोटी पकड़ के घर से निकाल देता हैं,
क्या बीतती होगी उस बहन पर,
जिसका भाई उसे सब्र रख कहकर रोज़ टाल देता हैं,
ज़ात ए मर्द इंसान कहा कमज़ोर पर वार करती है,
बेबस को और बेबस करती हैं लाचार को लाचार करती हैं
ज़रा सोचो इन्ही से तो सब हैं, हम इनके पीछे पीछे दौड़ते हैं इनसे दिल लगाते हैं
प्यार दिखाते हैं, इज़हार जताते हैं कभी कामयाब होते हैं कभी हार जाते हैं,
गुस्सा बताते हैं, मर्दानगी दिखाते हैं, ACID फेकते हैं, क्यूंकि उसे तुमसे प्यार नहीं हैं। हैं ना
फिर वकालत में शान से अपने कर्मो को रैकते हैं,
यह तो बातें थी मोहब्बत की, मगर हालत बाद ए निकाह के और भी मुबारक हैं,
कोई किसी कमरे में भूखी पड़ी हैं, किसी को भुखार से हरारत हैं
किसी को अपनों ने आग से झिंझोड़ दिया हैं,
ज़रा ज़रा सी बातों पर हाथों को तोड़ दिया हैं
मां बन गई हैं, फिर भी रोज बच्चो के आगे हैं पिट रही,
लग ना जाए ज्यादा इसलिए खुदहीखुद में हैं सिमट रही
एक हमारी जात हैं जिसे इनके पहनावे में दिक्कत हैं,
कसूर नहीं हैं इनका आखिर हवस ही मर्द कि फितरत हैं
ख़त्म करनी होगी यह हरामजादगी इस जहान ए ख़राब में,
करना होगा ज़िक्र औरतों का अब से उमूर ए नायाब में
ये होगा तो शायद एक बुजदिल आप खुदसे नज़र मिलाएगा
अक्स जो नपुंसक था आईने में हकीकत में दिलेर बन जायेगा
ये उस दिन सब नाश होगा,और फिर सब ठीक होजायेगा
जब ज़ात ए मर्द में से मैं और सिर्फ मैं हट जाएगा,
तब कोई बाप कोई भाई अपनी बेटी अपनी बहन से ये कह पाएगा,
की होगा ज़माना कुछ भी, साले ज़माने की ऐसी कि तैसी,
तू तेरे घर आजा, यह तेरा ही तो घर हैं, बाकी मैं देख लेगा
मैं सब देख लेगा, सबको देख लेगा....
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