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कितनी नफ़रत भरी जाती होगी,
तुम्हारे शून्य मस्तिष्क के भीतर,
कितनी घृणा पैदा की जाती होगी,
तुम्हारे हृदयविहीन हो चुके हृदय के भीतर,
कितनी विभत्स मृत्यु दी जाती होगी,
मानवता को भीतर ही भीतर!!
ताकि उजाड़ सको तुम अपने बारूद से,
किसी मासूम का प्रफुल्लित परिवार,
ताकि कुचल सको तुम अपने टैंक से,
किसी निर्दोष की कार,
ता
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