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कितनी नफ़रत भरी जाती होगी,
तुम्हारे शून्य मस्तिष्क के भीतर,
कितनी घृणा पैदा की जाती होगी,
तुम्हारे हृदयविहीन हो चुके हृदय के भीतर,
कितनी विभत्स मृत्यु दी जाती होगी,
मानवता को भीतर ही भीतर!!

ताकि उजाड़ सको तुम अपने बारूद से,
किसी मासूम का प्रफुल्लित परिवार,
ताकि कुचल सको तुम अपने टैंक से,
किसी निर्दोष की कार,
ताकि विध्वंश कर सको तुम अपने मिसाइल से,
किसी युग में सृजित मनाज़िर बारम्बार ।

जब भी जोड़ी जाएगी इतिहास में तुम्हारी कहानी,
स्मरण कराएगी एक सनकी शासक की मनमानी,
याद रखो,
तुम्हारे क्रूरता की गूंज रहेगी जावेदानी।।
         
                      – शशि

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