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विह्वल-विह्वल है मन मेरा
अनुपम एक संचार हुआ है।।
जब से छुए हैं तुमने उत्पल
तन में मधुर प्रसार हुआ है।।
अभी तलक अंजान थे साजन
अब मुझको कुछ यार हुआ है।।
साजन अब तुम प्यार करो न
अब तो मुझको प्यार हुआ है।।
गोदी में तुम मुझको लेकर
मेरे संयम-बंध तोड़ दो।।
मर्यादा के साथ हमारे,
सारे जो अनुबंध तोड़ दो।।
लेन-देन के सकल प्रयोजन
का दिल से व्यवहार हुआ है।।
साजन अब तुम प्यार करो न
अब तो मुझको प्यार हुआ है।।
दूर नहीं तुम मुझसे जाओ,
प्रेम की बारीकी बतला दो।।
अपनी बाहों में लेकर के,
मेरे बालों को सहला दो।।
छुअन के मोहक एहसासों का
मन से अब व्यापार हुआ है।।
साजन अब तुम प्यार करो न
अब तो मुझको प्यार हुआ है।।
कोमल-कोमल नर्म गाल पर
अधरों से आलिंगन कर दो।।
मेरे होंठों के प्याले में,
अपने अधर की सरिता भर दो।।
अभी तलक मन रमा नहीं था
प्रेम में अब लाचार हुआ है।।
साजन अब तुम प्यार करो न
अब तो मुझको प्यार हुआ है।।
आहिस्ता, धीरे धीरे से,
हाथों से तुम करो शरारत।।
अंग-अंग ऐसे सहलाओ,
दूर करो सब तन की हरारत।।
काम-रोग से पीड़ित काया,
इसका अब उपचार हुआ है।।
साजन अब तुम प्यार करो न
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