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आंखों में कुछ रंगीन ख्वाव लिए बैठा हूं
फिर वही ग़ज़ल की किताब लिए बैठा हूं
किसी ने छोड़ा तो किसी ने बिठाया पलकों पर
उंगलियों पर मोहब्बत का हिसाब लिए बैठा हूं
गर है
फिर वही ग़ज़ल की किताब लिए बैठा हूं
किसी ने छोड़ा तो किसी ने बिठाया पलकों पर
उंगलियों पर मोहब्बत का हिसाब लिए बैठा हूं
गर है
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