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जानता हूं सच है क्या,
पर झूठ से वफादारी करता हूं मैं
रास्ता भी है, मंजिल भी है
पर खामोश खड़ा देखता हूं मैं
अकेले चलने की ताकत नहीं
पर काफिले में सबको हिम्मत देता हूं मैं
सुबह का इंतजार है, रात बड़ी लंबी है
पर आंखे खोल कर देखने से डरता हूं मैं
अपनी दास्तां जब उसने सुनाई
हाल मुझ जैसा ही था
मैं उस मोड़ से लौट आया
जहां रास्ता एक सा हुआ
तबाही का मंजर देख डर गया
क्या मालूम था तूफान गुजर गया
अब जरूरत थी हौसले की
पर संभलता कैसे खुद टूटता हूं मैं
आंखों में अश्क होठों पर मुस्कान
फितरत ही कुछ ऐसी मेरी
कोशिश बहुत की
पर आज भी अपने ही जैसा हूं मैं
जानता हूं सच है क्या,
पर झूठ से वफादारी करता हूं मैं.....
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