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अग़र मिल जाऊं तुम्हें धोखे से
तो दिल का मलाल गहरा मत रखना
अग़र खिल जाऊं बग़ैर कांटों के
तो इतना विशाल पहरा मत रखना
कह देना वो सब कुछ
जो बाकी था एक जमाने में
वो दिन याद कर लेना
जब हफ़्तों लगे थे तुझे इक बात मनाने में
"भला मेरी निग़ाहों से ,जो छुपकर देख आते हो
वो रौनक़ प्यार का, दिन रात तेरे चेहरे छिपाते है
परिंदे रोज़ पिंजड़े तोड़ ,सरहद छू के आते है
फरिश्ते वो नहीं जो हाथ की लकीरें बताते है"
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