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✍️✍️✍️✍️✍️✍️
हो आज तुम निशब्द क्यों?
व्यग्र और स्तभत यूं
ऊंचाइयों को ताकते
डरे हुए से कांपते
मंजिलों से डर रहे
घुटन से जैसे मर रहे
है मुश्किल बडी डगर मगर
लो जीत जो बढ़ो अगर
भ्रमित जो तुम हो रहे
गंतव्य से क्यों खो रहे?
बडा हुआ यूं सोचना
अब करो युद्ध की घोषणा
करो संघर्ष उस विपरीत परिस्थिति से
बुराई की उपस्थिति से
भेदो ये चक्रव्यूह और आगे बढ़ो
चट्टानों में नाम तुम अपना गढ़ो
अपनी कीर्ति और यश का विस्तार करो
बादलों पे धरती का अविष्कार करो।।
✍️ शैफाली ✍️
हो आज तुम निशब्द क्यों?
व्यग्र और स्तभत यूं
ऊंचाइयों को ताकते
डरे हुए से कांपते
मंजिलों से डर रहे
घुटन से जैसे मर रहे
है मुश्किल बडी डगर मगर
लो जीत जो बढ़ो अगर
भ्रमित जो तुम हो रहे
गंतव्य से क्यों खो रहे?
बडा हुआ यूं सोचना
अब करो युद्ध की घोषणा
करो संघर्ष उस विपरीत परिस्थिति से
बुराई की उपस्थिति से
भेदो ये चक्रव्यूह और आगे बढ़ो
चट्टानों में नाम तुम अपना गढ़ो
अपनी कीर्ति और यश का विस्तार करो
बादलों पे धरती का अविष्कार करो।।
✍️ शैफाली ✍️
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