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✍️✍️✍️✍️✍️✍️
हो आज तुम निशब्द क्यों?
व्यग्र और स्तभत यूं
ऊंचाइयों को ताकते
डरे हुए से कांपते
मंजिलों से डर रहे
घुटन से जैसे मर रहे
है मुश्किल बडी डगर मगर
लो जीत जो बढ़ो अगर
भ्रमित जो तुम हो रहे
गंतव्य से क्यों खो रहे?
बडा हुआ यूं
हो आज तुम निशब्द क्यों?
व्यग्र और स्तभत यूं
ऊंचाइयों को ताकते
डरे हुए से कांपते
मंजिलों से डर रहे
घुटन से जैसे मर रहे
है मुश्किल बडी डगर मगर
लो जीत जो बढ़ो अगर
भ्रमित जो तुम हो रहे
गंतव्य से क्यों खो रहे?
बडा हुआ यूं
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