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शोक सदा तुम अपना पाले
गवाँ जीवन के देते क्षण,
दिन रात की वेदनाओं से
बना स्वयं के भीतर देते रण॥
अंगारो पर चलना पर
न थकान करो सहज स्वीकार
कठिन डगर -पथ के कंटक
से खाकर जख्म न मानो तुम अपनी हार॥
उठो निद्रा से पहनो बल को
लड़ो, की तुम बहादुर हो,
इतिहास उसी को सुहाता
जो वीरगति को आतुर हो॥
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