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अक्सर लोगों कि यहि तो
शिकायतें रहिं है हम सें।
जो कर गए इजहारें वो
समझा ना गया हैं हम सें॥१॥
आज तक जहालियत कि
यहि दास्तां रहां है हमारा।
कहना ना आया उनको फिर
हमने हि ना समझा इशारा॥२॥
गुफ्तगु कि शरहदें भि होगिं,
धुन भि तो रहा होगा अपना।
काक थे या कोयल के बोल,
सुन भि सुना भि तो अपना॥३॥
या तुम हम पे मिलो या हम तुम पे मिले
संगम सुरों का कराते हैं अपनी।
फिर बोले या गाये साज रिमझिम
सवेरा हम तुम्हारे या तुम हमारे रजनी॥४॥
कदम से कदम मिलाए जा.
कुछ सिखो कुछ सिखाए जा।
ना समझी फिर गवारा नहीं.
ना बोले भि अब बतलाए जा॥५॥
मुवक्किल कैसा मुकदमा कैसी
वेवफा मांगे अब वफा को कहें सुबुत।
यारों शबनम् वहि शबाना वही
जज वही जुर्माना वही को कहें कुबुत॥६॥
बूत से बने हम दर किनारे हुए।
टुटकर बिखरें फिर बेगाने हुए॥
इतराऐ कहें शमा बात ना सम्झे
सम्झा परवान चढें वहि परवाने हुए॥७॥
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