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बहते-बहते आठों पहर,
घाटों पर वो ठहर-ठहर,
चुराकर आसमान का नीला रंग,
खेल कूद कर लहरों के संग,
किनारों से वो लड़ती है,
ये नदी मुझे ज़रा नटखट दिखाई पड़ती है।
मेरे आगे, ये मेरे ही आकार की है,
उसके आगे बड़ी विशाल सी है,
उससे हठखेली करने का मन बनाता हूँ,
उस खातिर जब भी मैं भीतर जाता हूँ,
ये मुझे ठंडी-ठंडी चुटकी काटकर गुज़रती है,
ये नदी मुझे ज़रा नटखट दिखाई पड़ती है।
मेरी देह उठती है और फिर डुबगी मारती है,
नकलची लहरें! मेरी नकल उतारती हैं,
उससे टकराकर हवा सन-सन सी चलती है,
ये शैतानी अक्सर वो सर्दियों में करती है,
इस नदी को क्या सज़ा दूँ मैं?
इसकी वजह से मेरी शरीर ठिठुरती है,
ये नदी मुझे ज़रा नटखट दिखाई पड़ती है।
घाटों पर वो ठहर-ठहर,
चुराकर आसमान का नीला रंग,
खेल कूद कर लहरों के संग,
किनारों से वो लड़ती है,
ये नदी मुझे ज़रा नटखट दिखाई पड़ती है।
मेरे आगे, ये मेरे ही आकार की है,
उसके आगे बड़ी विशाल सी है,
उससे हठखेली करने का मन बनाता हूँ,
उस खातिर जब भी मैं भीतर जाता हूँ,
ये मुझे ठंडी-ठंडी चुटकी काटकर गुज़रती है,
ये नदी मुझे ज़रा नटखट दिखाई पड़ती है।
मेरी देह उठती है और फिर डुबगी मारती है,
नकलची लहरें! मेरी नकल उतारती हैं,
उससे टकराकर हवा सन-सन सी चलती है,
ये शैतानी अक्सर वो सर्दियों में करती है,
इस नदी को क्या सज़ा दूँ मैं?
इसकी वजह से मेरी शरीर ठिठुरती है,
ये नदी मुझे ज़रा नटखट दिखाई पड़ती है।
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