एक रात मेरी रावण से मुलाक़ात हुई ,
सामाजिक मुद्दों पर कुछ हमारी बात हुई ।
दरअसल उस रात होना रावण का भाषण था,
परंतु दुर्भाग्यवश बस मैं अकेला श्रोतागण था ।
मंच से उतरकर मेरे पास बैठते हुए,
आदत से विवश अपनी मूँछें ऐंठते हुए,
बोल पड़ा रावण, "सुनो बात हमारी भैया,
क्या आदमी भूल गया है सारी शर्म-ओ-हया?"
"ये बताओ जो ये हमारे पुतले पर बाण चलाते हैं,
बंधु क्या ऐसा करने से ये राम बन जाते हैं?"
"ख़ैर ये राम वाला तर्क भी अब पुराना हो गया है
सच्चे राम के हाथों जले हमें ज़माना हो गया है|"
"अब तो इन नक़ली रामों से काम चलाना पड़ता है
क्या करें दोस्त, यह रिवाज है निभाना पड़ता है"
"तुम लाना तो आज का अख़बार ज़रा
और पढ़ो बुद्धिजीवियों के विचार ज़रा "
"भ्रष्टाचार, ग़रीबी, घोटाले और भुखमरी
असाक्षरता, आतंकवाद और बेरोज़गारी "
"ख़याल में उनके, हमारे सिरों के ये पर्याय हैं
एक ज्ञानी का ऐसा अपमान, ये कैसा न्याय है?"
"लैंगिक भेदभाव यही खोखले लोग करते है |
और फिर सारा दोष हमारे सिर क्यों मढ़ते हैं?"
"ये जो डेरे औ
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