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चुपकेसे मुझे कुछ कहती हो क्या
मेरी ग़ज़लों में तुम रहती हो क्या
समझता हूं मै सब कुछ समझता हूं
समझता नहीं दिल समझती हो क्या
उलझे रहते हैं जज़्बात ओ खयालात
समझती नहीं कुछ समझती हो क्या
रिमझिम सावन की मदमस्त बूंदे
तुम भी मेरी तरह मचलती हो क्या
महसूस हो रही है जवानी हवाओंमे
ज़रा सीनेसे आकर लीपटती हो क्या
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