मेरे इश्क़ को कुछ इस क़दर है तूने जिया,
मानो इश्क़ आफ़ताब ने समंदर से किया।
दिन चढ़े, आफ़ताब समंदर से दूर हुआ जाता है,
दिन ढले, समंदर में फिर समा जाता है।
--संदीप गुप्ता
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