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मैं चला वहीं तक, जहाँ तक निशान-ए-क़दम मिले,
हिम्मत भी थी, और क़ुव्वत भी,
मैं चला वहीं तक, जहाँ तक क़ाफ़िले मिले।
बढ़ना तो था हर हाल में, आगे मुझे,
पर क़दम थे रुके, लौटने की ज़िद लिए,
जो रास्ते में ढूँढता शिद्दत से, आगे,
निशान-ए-क़दम पर मेरे भी,
यक़ीनन,
आज क़ाफ़िले चलते।
-संदीप गुप्ता SandySoil
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