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हा मैं बेटी हू
अपने मां बाप की
नहीं लेती थी मेरी मां कई रमजान
नए कपड़े कोई
पर याद नही मुझे कभी बीना नए सूट की
कोई ईद हुई हो मेरी
हा मैं बेटी हू
अपने मां बाप की
अपने जूते सिलवाते थे
मेरे पापा कई बार
नया जूता लेना उन्हें रास नहीं आता था
और मेरे पुराने जूते कई बार
अलमारियों धूल खाते नजर आते थे
हा मैं बेटी हु
अपने मां बाप की
नही जाते थे कभी वो
रिश्तेदारों से मिलने
जाने आने का किराया जो ज्यादा था
पर याद है मुझे ,
मैंने कभी अपने स्कूल की
यात्राएं मिस नही की
हा मैं बेटी हु
अपने मां बाप की
बहुत ज्यादा चढ़ उतार झेले
अपने जिंदगी के उन्होंने
ताकि मेरे शिक्षा में कोई चढ़ उतार न आए
नींद नहीं आती थी मेरे मां को भी उस दिन
जब कल मेरे इम्तिहान होते थे
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