
हा मैं बेटी हू
अपने मां बाप की
नहीं लेती थी मेरी मां कई रमजान
नए कपड़े कोई
पर याद नही मुझे कभी बीना नए सूट की
कोई ईद हुई हो मेरी
हा मैं बेटी हू
अपने मां बाप की
अपने जूते सिलवाते थे
मेरे पापा कई बार
नया जूता लेना उन्हें रास नहीं आता था
और मेरे पुराने जूते कई बार
अलमारियों धूल खाते नजर आते थे
हा मैं बेटी हु
अपने मां बाप की
नही जाते थे कभी वो
रिश्तेदारों से मिलने
जाने आने का किराया जो ज्यादा था
पर याद है मुझे ,
मैंने कभी अपने स्कूल की
यात्राएं मिस नही की
हा मैं बेटी हु
अपने मां बाप की
बहुत ज्यादा चढ़ उतार झेले
अपने जिंदगी के उन्होंने
ताकि मेरे शिक्षा में कोई चढ़ उतार न आए
नींद नहीं आती थी मेरे मां को भी उस दिन
जब कल मेरे इम्तिहान होते थे
हा मैं बेटी हु
अपने मां बाप की
विरासते बेटो के लिए हैं तो कोई गम नही
जो आपने दिया वो किसी विरासत से हरगिज कम नही
तू काबिल बन, तू कामयाब बन
उनका ये जज्बा, दुनियाके तमाम दुआवो से कम नही
हा मैं बेटी हु
अपने मां बाप की
कुछ मांगने का दिल अब नहीं करता उनसे
सारी उम्र जो लिया
पर दिल कहा मानता हैं उनका
आज भी थमा देते थे हातो मैं, रमजान की ईदी
समझकर ही सही
हा मैं बेटी हु
अपने मां बाप की
ऊपरवाले बस मेरा एक काम करना
तमाम बेटियां को इस काबिल बनाना
की जिन्दगी में कभी मां बाप से मांगने के बदले
बस दे सके, दे सके वो सारी खुशियां
जो उन्होने त्याग करदी,
थमा सके वो भी मां बाप के हातो में,
कुछ नहीं तो रमजान की ईदी समझकर...........
हा मै बेटी हू
अपने मैं बाप की
Happy Ramadan
Sanaha Pathan
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments