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अच्छे लगते थे तुम जब वो सड़को की सैर पर निकलते थे,
वो सादी चप्पलें पहने हुए,
अच्छे लगते थे जब यूँ ही पूरी मौज में चला करते थे,
अच्छे लगते थे तुम जब तुम अपने अंदर अपना गाँव बसाकर चलते थे,(शहर में होते हुए भी)
अच्छे लगते थे तुम जब कहते थे कि मुझें ये अंग्रेज़ी वंग्रेजी अच्छे से नहीं आती,इसलिए हिन्दी लिखता हूँ,
अच्छे लगते थे तुम जब वो छोटी छोटी बातें लिखने में बड़ा वक़्त लिया करते थे,
अच्छे लगते थे तुम जब यूँ ही हमें कह दिया करते थे कि तुमसा कोई नहीं,
अच्छे लगते थे जब तुम वो काला कोट पहना करते थे,
अच्छे लगते थे तुम तुम्हारे हर अंदाज़ में,
बोलने में,
चलने में,
रूठने में,
मनाने में,
तुम्हारे प्रेम में होने में,
तुम्हारे प्रेम करने में,हाँ मगर तुम्हारे गुस्से से डर लगता था।
और आज भी अच्छे लगते हो तुम,जब मैं तुम्हें ख़बर हुए बिना तुम्हें देख लेती हूँ,
अच्छे लगते हो आज भी जब तुम यूँ ही स्कूल के बच्चो के साथ बैठकर बातें करते हो,
उनके साथ
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