
Share0 Bookmarks 27 Reads0 Likes
तुम्हे याद हैं तुम हमेशा से चाहते थे,
कि सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं तुम्हारे साथ रहूँ,
जितना ज़्यादा हो सके उतना साथ रहूँ।
मजबूर नही किया तुमने मग़र request कई बार की हैं।
मेरे साथ बिताये हुए लम्हें तुम्हारी ज़िंदगी का बेहतरीन हिस्सा हैं, ये बात तुमसे बेहतर तो कोई नही जान सकता।याद हैं न तुम्हें?
तुम्हें हमेशा से शिकायत रही हैं कि मैं सब भूल जाती हूँ,
भूलती नहीं हूँ कुछ,न भूल सकती हूँ और न भूलना चाहती हूँ,
हाँ ये बात और हैं कि मैं तुम्हारे सामने उन चीज़ों को याद करके तुम्हें कमजोर नही करना चाहती।
बहुत सारी शिकायतें रहती हैं न मुझसे,
होनी भी चाहिए, मैंने कभी तुम्हारी शिकायतों का बुरा नही माना, मान भी नही सकती।
कभी कभी ये जो तुम लुका-छिप्पी का खेल खेलते हो न आज भी,डर नही लगता अब इससे,हाँ एक वक़्त था,कि बहुत बैचैन हो जाती थी मैं मग़र अब नही। क्योंकि पहले ये तुम खेल सिर्फ़ मुझे चोट पहुँचाने के लिए खेलते थे और अब खेलते हो तो ख़ुद को चोट से बचाने के लिये।
और मैं भी चाहती हूँ कि तुम ख़ुद को कई और भी चोटों से बचा लो।
तुमनें हमेशा चाहा कि मैं तुम्हें इस प्रेम की नदी में बहा ले जाऊँ,
औऱ मैंने हमेशा चाहा कि तुम एक किनारे उतर जाओ,
मेरे साथ बहकर तो तुम कही नही पहुँच पाओगें,
तुम शायद आज तक भी मुझें वैसे नही समझ पाये, जैसा मैंने चाहा था,शिकायत नही हैं ये बस थोड़ा सा अफसोस हैं।
समझ सकते हो तो समझो,
मैं नदी का बहाव नही ख़ुद एक नदी हूँ,
जिसे सिर्फ़ और सिर्फ़ बहना हैं, रुक नही सकती मैं और न तुम्हे अपने साथ बहा कर ले जा सकती हूँ।
माना ये नदी भी अपनी ज़िंदगी मे तुम्हारे साथ का ठहराव चाहती हैं, मग़र ये नामुमकिन हैं।
मुझपर एक ज़िम्मेदारी हैं कि मैं नदी होने का सही मतलब साबित कर सकूँ, अगर अपनी ज़िम्मेदारी से भागी तो क्या बेमानी नही होगी?
तुम मेरे साथ नदी नही बन सकते,
तुम उस नदी के एक किनारे खड़े वो दरख़्त हो,जिसपर बैठती हैं नन्ही नन्ही चिड़िये,ये बात शायद तुम ख़ुद भी अपने बारे में नही जानते मग़र मैं जानती हूँ।
हम्म,तुम्हे तुमसे ज़्यादा जानती हूँ मैं।यही सच हैं तुम एक दरख़्त हो,एक आशियाना हो बहुत सारे परिंदों का।
तुम्हारा फ़र्ज़ हैं अपने इस फ़र्ज़ को निभाना,
औऱ मेरा फ़र्ज़ हैं मेरे नदी होने के बहाव को बनाये रखना।
बस वही कर रही हूँ मैं, औऱ वही करोगें तुम।
वैसे कोई कसम नही हैं तुम्हे,क्योंकि मैं जानती हूँ कसम का बंधन तुम्हे पसन्द नही हैं मग़र मेरे कहने पर तुम वो कसम उम्र भर निभा सकते हो।
नदी,
तुम्हारी नदी
- Salma Malik
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments