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मुझे डर हैं किसी दिन तुम लौट न आओ और मुझसे कही वो सवाल न कर बैठो,जिसका जवाब चाहते हुए भी और जानते हुए भी मैं तुम्हे न दे सकूँ।
क्योंकि जवाब को जानते हुए भी ग़र कोई जवाब न दे पाए,तो ये दोनों के लिए ही दुख का सबब होता हैं, पूछने वाले के लिए भी औऱ न बताने वाले के लिए भी।
वैसे कितनी अजीब हैं न ज़िंदगी जिससे सब कुछ कहना चाहो,और उससे कुछ भी न कह पाओ तो ऐसा लगता हैं जैसे कोई साँस चलती चलती कही रुक गयी हो,बड़ा बैचैन हो जाता हैं इंसान।
सुनो,
कभी वापिस मत लौटना,
और ग़र कभी लौट भी आये तो ध्यान रखना कि मुझसे कोई सवाल न करो,क्योंकि तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब शायद मैं ऐसे ही न दे पाऊँ जैसे कोई बच्चा कभी अपने पिता से ये नही कह पाता कि  वो उनसे कितना प्यार करता हैं या कोई पिता नही कह पाता कि उनकी सख़्ती महज प्यार के सिवा कुछ नही।
तुम बस खामोशी से महसूस करना मुझे,
तुम वो सब सुनना जो मैं बिना कहे तुमसे कह दूँ,
तुम वो सब मत सुनना जो मैं तुमसे कहूँ।
तुम समझना मुझें, मुझें समझाने के बजाय।
क्योंकि किसी को समझना,किसी को समझाने से ज़्यादा सार्थक होता हैं।
- Salma Malik

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