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मुझे डर हैं किसी दिन तुम लौट न आओ और मुझसे कही वो सवाल न कर बैठो,जिसका जवाब चाहते हुए भी और जानते हुए भी मैं तुम्हे न दे सकूँ।
क्योंकि जवाब को जानते हुए भी ग़र कोई जवाब न दे पाए,तो ये दोनों के लिए ही दुख का सबब होता हैं, पूछने वाले के लिए भी औऱ न बताने वाले के लिए भी।
वैसे कितनी अजीब हैं न ज़िंदगी जिससे सब कुछ कहना चाहो,और उससे कुछ भी न कह पाओ तो ऐसा लगता हैं जैसे कोई साँस चलती चलती कही रुक गयी हो,बड़ा बैचैन हो जाता हैं इंसान।
सुनो,
कभी वापिस मत लौटना,
और ग़र कभी लौट भी आये तो ध्यान रखना कि

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