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घर समाज रोजी रोटी के मसले नहीं होते
तो हम कभी तेरे पहलू से निकले नहीं होते
गर होती इन लोगों को किसी से मोहब्बत
तो देख कर हमको साथ यूँ जले नहीं होते
लड़खड़ाते हुओं लोगों को वो देता है सहारा
हमें इल्म होता तो खुद से सम्भले नहीं होते
इश्क़ जिस भी सूरत में मिला अच्छा मिला हमें
सीखते कैसे गर इस मोड़ पर फिसले नहीं होते
कोई बसा देता एक शहर मोहब्बत के मारों का
तो हमने शहर दर शहर बेसबब बदले नहीं होते
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