पोटली सुख की दिखा, ग़म दे गए
जो भी था सब ले गए, कम दे गए
वो मुहब्बत के मुखौटे डाल के
हाथ में नफ़रत का परचम दे गए
पत्थरों ने भी सियासत सीख ली
तोड़ कर शीशे को मरहम दे गए
अब ज़हन की खिड़कियाँ भी बंद हैं
मज़हबी कुछ ऐसा आलम दे गए
- साहिल
Twitter: @Saahil_77
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