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ज़रा उलझे ज़रा सुलझे से इक किरदार जैसे हैं
तुम्हारे प्यार में कुछ शाद, कुछ बीमार जैसे हैं
तलब है सच ही कह डालें, ज़रा सा डर भी लगता हैं
मिरे सरकार के अंदाज़ भी सरकार जैसे हैं
ज़रा किरदार हल्का हो, तो भारी दाम लगते हैं
उसूलों के वज़न में क्यूँ दबे, बेकार जैसे हैं
हवा में वो ज़हर फैला, चमन सारा झुलसता है
गुलों में भी चुभन है आज, सारे ख़ार जैसे हैं
बड़े मसरूफ़ हो तुम, हो सके मिलने चले आना
बड़ी फ़ुरसत में रहते हैं कि हम इतवार जैसे हैं
- साहिल
Twitter: @Saahil_77
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