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ये किस तूफां में फँसते जा रहे हैं

ना जाने कौन रस्ते जा रहे हैं


अभी तो दर्द का आग़ाज़ ही है

ख़ुशी को क्यूँ तरसते जा रहे हैं


ज़हर तेज़ी से चढ़ता जा रहा हैहम इक दूजे को डसते जा रहे हैं


मेरे आगे से दुनिया को हटा लो

कि इस दलदल में धंसते जा रहे हैं


उन्हें हम ढील जितनी दे रहे हैं

शिकंजे उनके कसते जा रहे हैं


- साहिल

Twitter: @Saahil_77


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