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समंदर पिया तो हैरां नही था मैं, रेत का सेहरा पीए जा रही है...
ए महबूब-ए-सितमगर ये कैसा मंज़र है तिश्नगी का, ज़रा समझा दे मुझे..
के इसे मैं पी रहा हूँ यां ये मुझे पिए जा रही है...
समर बटालवी
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