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उम्र बढ़ जाती है
सोच बदल जाती है
बदल जाता है सोच का पैमाना
जिंदगी के हर दौर का रह जाता है अफसाना,
अकेले कहीं बैठ कर हर इंसान
लगाता है पल पल का हिसाब,
जिंदगी के हर पन्नों का पलटता है किताब,
अपने बीते हुए लम्हों से जुड़ी यादों का
क्या खोया क्या पाया जिंदगी में बेहिसाब,
यही है बढ़ते उम्र का हिसाब ,
जिसमें उलझे हैं हम सब जनाब ।।
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