कुछ भी कहना सुनना बेमानी है,
यह दास्ताँ बडी पुरानी है,
कुछ भी मांगने से नही मिलता,
मिलता है कुछ तो तिरस्कार मिलता,
माँगकर अपने वजूद को ना ठुकराओ,<
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