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गैरों से नहीं अपनों से शिकायत क्यों है
ऐ जिंदगी तेरे बज्म में मोहब्बत क्यों है
जब प्यार व्यापार बन गया है अब तो
तो इस लफ्ज़ से इनायत क्यों है ।
खुद के दामन पर दागदार छींटे हैं
फिर भी वो दम भरते हैं अपने बेगुनाही के
इज्जत शोहरत जिन्हे मिली है अब तक
वही हमारे अरमानों के कातिल हैं ।।
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