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इन सर्द हवाओं से इल्तिजा की है
मेरे जिस्म को छलनी ना करें
मेरे हालात के इन जर्जर आशियाने में
अपने सर्दी से रुसवा ना करें ।
मेरे जिस्म की इन कांपती हड्डियों
पर तरस खाएं,
उन रईसों के महलों को आबाद करें
जिनके शरीरों को गर्म चादरों की
सिलवटें मयस्सर हैं,
मेरे टूटी फूटी झोपड़ी और चिथड़े में लिपटे
जिस्म को अपने सर्दी से जुल्म ना करें ।
ये गरीबी और ठिठुरता बदन सर्द हाथों
में कांपती ये बैसाखी दो कदम चलना भी
गवारा नहीं,
उस पर सर्द हवाओं का सितम
जीवन का सहारा भी नहीं ।।
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