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बड़ी हलचल है इस शहर के
हर गली मोहल्लों में
लगता है चुनाव आया है,
दलों के लहराते झंडे साथ में नेताओं की टोली
हाथ जोड़े जनता से खोलते वादों की पोटली
जनता शांत मायूस चेहरों से
निहारती लुभावने वादों की झोली
सच तो यह है यह सिर्फ सुनने सुनाने के लिए
सत्ता पाते ही याद नहीं रहता वादों का
सियासत का यही फलसफा है
जो जनता को रास नहीं आता है,
इसलिए तो राजनेताओं को दरवाजे पर
दस्तक देना पड़ता है ।
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