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रुसवाइयों के बोझ से दबे हैं हम
फिर भी सिर उठाकर चलने की हिम्मत रखते हैं
हमारे कदमों के निशान मिटा सकता नहीं कोई
क्योंकि हम खुद पर एतबार रखते हैं ।
माना कि हमारी वफाओं के सिला को
जमाने ने रुसवा किया,
किसी से ना कोई गिला शिकवा हमारा
हमने तो कुर्बान किया खुद को
फिर किसी से ना कोई मलाल हमारा ।
अपने धुन में चलता रहा अनजान राहों पर
एक दिन मंजिल हमारी हमसफर होगी
थककर बैठ जाना कायरता है
जिंदगी फिर ना दोबारा मिलेगी ।।
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