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रुसवाइयों के बोझ से दबे हैं हम
फिर भी सिर उठाकर चलने की हिम्मत रखते हैं
हमारे कदमों के निशान मिटा सकता नहीं कोई
क्योंकि हम खुद पर एतबार रखते हैं ।
माना कि हमारी वफाओं के सिला को
जमाने ने रुसवा किया,
किसी से
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