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रात की खामोशी में तकिए में मुंह छुपा कर
तूं सोता है,
सपनों की सुनहरी दुनिया में
खो गया खुद को भूला दिया अपने
अवसाद के उस पल को,
जिसमें हर पल रोता है,
तकिए में मुंह छुपा कर सोता है ।
नींद खुलते ही पथरीले धरा से
टकराएगा,
तेरे सपनों का महल ढह जाएगा
हकीकत के नुकीले कांटों का दंश
देख क्यों रोता है,
तकिए मे मुंह छुपा कर सोता है ।।
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