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इन बड़े घने वृक्षों को देखो,
इनमें घने पत्ते हैं फूल भी हैं,
फल भी खूब लगते हैं,
क्या हमने कभी सोचा है ?
यह सब दूसरों के लिए परोपकार के लिए,
किसी वृक्ष को स्वयं का फल खाते देखा है,
नहीं ना ! इनका पूरा जीवन ,पूरी पूंजी बस
परोपकार के लिए , दूसरों के लिए ,
यहां तक सुख जाने पर लकड़ी भी ,
जलाने में काम आती है ।
हम इंसान सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए जीते हैं
कितना भी दौलत हो हम समाज के लिए,
परोपकार के लिए कुछ दिखावा कर समाज
में प्रदर्शन करते हैं ।
इसलिए बच्चन जी की कविता के आधार पर चार लाइने जो शायद इन्सानों के आचरण को दर्शाती है:
वृक्ष हों बड़े खड़े,
फूल फल से हों भरे,
एक पत्र भी मांग मत
कर शपथ कर शपथ
अग्निपथ, अग्निपथ ।।
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