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अपनी नादानियों का बोझ उठाता रहा हरदम
जिसे मैंने अपना फर्ज समझा
उसे जमाना मानता रहा मूर्खता का कदम,
क्या करूं औरों से क्यों गिला करूं,
जब खुद को झोंक दिया कर्ज का फर्ज
निभाने में,
मुझे कोई गम नहीं अपने निर्णय को आजमाने में
मुझे सुकून है जो मैंने किया,
मैने अपने आप को फर्ज पर कुर्बान किया,
औरों की निगाहों में गुनहगार सही,
पर अपने नजरिए में ईमानदार ही सही ।।
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