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हालात यूं बिगड़ जायेंगे
कभी सोचा नहीं था
देश के हर कोने में आक्रोश का
उबाल कभी सोचा नहीं था,
इस मुल्क का हर शख्स जिम्मेदार है
इस हालात के मंजर का
मजहब ही किरदार होगा
कभी सोचा नहीं था ।
कैसे कैसे बोल का ढोल पीटते हैं लोग
समाज के ठेकेदार बन फैसला करते हैं लोग,
एक सौ तीस करोड़ अवाम की शांति का
संदेश चंद लोगों की जागीर,
कैसे अमन की कामना करें
कभी सोचा नहीं था ।।
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