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मैंने जिंदगी को जैसा समझा
उस हकीकत को अपने शब्दों में
सुनाता हूं,
माना की जिंदगी सबकी खुशगवार
होती नहीं,
फिर भी जिंदगी के गीत सुनाता हूं ।
अपने असहाय बाजुओं को अपने
हौसलों से ताकतवर बनाता हूं,
हर हाल में अपने हिस्से का बोझ उठाता हूं ।
कोई गम नहीं मेरे एक बाजू बेदम हुए
एक पैर से अपने मंजिल की दूरी नापता हूं,
मैं कमजोर नहीं जिंदगी के हर थपेड़ों को
सहकर भी,
जिंदगी के हर शैय को जिंदगी का
गीत गुनगुनाता हूं,
मैं जिंदगी का गीत गुनगुनाता हूं ।।
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